एस के श्रीवास्तव विकास
*वाराणसी/-प्रधानमंत्री की संसदीय क्षेत्र वाराणसी में इन दिनों सड़को पर नारी अबला नही सबला व आत्मनिर्भर की कहावत चरितार्थ होते देखने को मिल रही है।प्राप्त जानकारी के मुताबिक ऑटो चलाने का पेशा तो वैसे पुरुषों का ही माना जाता है लेकिन अचानक-साहब किधर चलना है,कोई स्त्री की आवाज आपके कानों में वो भी बनारस सरीखे शहर में आपको आश्चर्य से सराबोर कर देता है।बात हो रही है चोलापुर की रहने वाली शिल्पी जायसवाल की जिन्होंने ऑटो चलाने वाले पिता से वाहन चलाना सीखा और अब वह बनारस की बेतरतीब सी सड़क पर सवारियों को ढोती नजर आती हैं।शिल्पी के हाथों में ऑटो चलाने का पहला शिल्प तो पिता ने गढ़ा और शौकिया अनुभव विवाह के बाद ऑटो चलाने वाले पति का साथ मिला तो जिंदगी मानो सड़क पर फर्राटे भरने लगी है।पूछने पर बताती हैं कि पति का साथ बड़ा होता है।हुनर को जब सही संबल मिलता है तो नतीजा मानो आपको पंख दे देता है कि चलो उड़ चलो।शिल्पी दो माह से अपनी दुधमुंही बेटी को परिजनों के सहारे छोड़कर सुबह नौ बजे ही टिफिन बांध कर ऑटो लेकर निकलती हैं और दिनभर सवारियां ढोकर हजार रुपये से अधिक तक नियमित आय प्राप्त कर रही हैं।पुरुषों वाले काम पर हंस पड़ती हैं और बताती हैं कि बराबर सभी हैं महानगरों में लड़कियों का ऑटो चलाना आम है।मेरा तो बचपन से ही मानो सपना रहा है कि ऑटो चलाऊं,पिता और पति दोनों के ही चालक के पेशे में होने से फायदा मिला है।विरासत को संभालने वाले गौरव का भाव भी मन में लिए वह सगर्व एक सवारी-एक सवारी कर अपनी आजीविका को साधती नजर आती हैं।कुछ समय पूर्व पति का एक्सीडेंट होने के बाद घर की आर्थिकी बेपटरी होने आई तो शिल्पी के हाथों ने स्टेयरिंग थामने का फैसला किया।परिवार ने भी साथ दिया तो उन्होंने चार सौ रुपये किराए पर ऑटो लिया और चोलापुर कस्बे से बनारस की बेतरतीब ट्रैफिक वाली सड़कों पर अपने सपनों को आकाश देने उतर गईं।बताती हैं कि नियमित हजार रुपये से अधिक की आमदनी हो जाती है।हाईस्कूल पास शिल्पी ने भले ही दुश्वारियों के बीच स्टेयरिंग थामी हो लेकिन वह खुद की नन्हीं बच्ची को उच्च शिक्षा दिलाना उनका सपना है।परिवार की रीढ़ बनने के बाद वह बचत भी कर रही हैं ताकि उनके सड़क पर संघर्ष से आगे की दुनिया के लिए उनकी बेटी को ऊंची उड़ान मिल सके।*