सरकार खाली करायेगी पहाड़ के कई गांव, 15 शहर चिन्हित

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देहरादून। चमोली जिले के अंतर्गत जोशीमठ नगर में पिछले वर्ष आई भूधंसाव की आपदा के बाद सरकार पर्वतीय क्षेत्र के नगरों की धारण क्षमता को लेकर अब सक्रिय हो गई है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर उत्तराखंड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र ने जोशीमठ समेत 15 नगर इसके लिए चिह्नित किए हैं। इनकी धारण क्षमता का आकलन करने के लिए एजेंसी तय कर दी गई है। अब वित्त विभाग से कुछ बिंदुओं पर राय मांगी गई है। सरकार का प्रयास है कि इस माह के आखिर से इन नगरों की धारण क्षमता के आकलन से संबंधित कार्य प्रारंभ करा दिया जाए। इससे यह साफ हो सकेगा कि ये नगर कितना दबाव झेल रहे हैं। इनमें गढ़वाल के 11 और कुमाऊं मंडल के चार नगर शामिल हैं। जोशीमठ भूधंसाव की घटना के बाद यह बात सामने आई थी कि वहां धारण क्षमता से अधिक दबाव है। इसे भी भूधंसाव का कारण माना गया। इसके बाद सरकार ने जोशीमठ समेत राज्य के अन्य पर्वतीय नगरों की धारण क्षमता का आकलन कराने का निर्णय लिया, ताकि इसके आधार पर वहां कदम उठाए जा सकें। इसके बाद उत्तराखंड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र ने प्रथम चरण में पहाड़ के 15 नगरों की धारण क्षमता के आकलन के लिए चिह्नित किया। इस कार्य के लिए विभिन्न राज्यों की 12 एजेंसियों को सूचीबद्ध किया गया। लंबी कसरत के बाद एजेंसी का चयन कर लिया गया है। इस कड़ी में टेंडर की प्रक्रिया भी पूरी कर ली गई है।
आवास विभाग को सौंपी जाएगी रिपोर्ट धारण क्षमता का आकलन होने के बाद इन नगरों से संबंधित रिपोर्ट आवास विभाग को सौंपी जाएगी। असल में प्रत्येक शहर का भूगोल, भार सहने की क्षमता अलग-अलग हैं। धारण क्षमता की आकलन रिपोर्ट में यह साफ होने के बाद आवास विभाग इन नगरों के लिए बिल्डिंग बायलाज में तमाम तरह के प्रविधान कर सकता है। यानी, वहां नियोजन से संबंधित प्रविधानों में बदलाव किया जा सकता है। नगर जिनकी धारण क्षमता का होगा आकलन
जिन नगरों को धारण क्षमता के आकलन के लिए चिह्नित किया गया है, उनमें जोशीमठ, कर्णप्रयाग, गोपेश्वर, गैरसैंण, देवप्रयाग, पौड़ी, श्रीनगर, नई टिहरी, मसूरी, उत्तरकाशी व रुद्रप्रयाग (गढ़वाल) और धारचूला, चंपावत, अल्मोड़ा व नैनीताल (कुमाऊं) शामिल हैं। इन नगरों में जियोलाजिकल, जियोटेक्निकल, जियोफिजिकल जांच, ढलान स्थिरीकरण, लिडार सर्वे आदि के माध्यम से धारण क्षमता आंकी जाएगी। इससे पता चलेगा कि इन नगरों पर अभी कितना बोझ है और इनकी भार सहन करने की क्षमता कितनी है।


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