अयोध्या/विकासखंड क्षेत्र के जलालपुर माफी में आयोजित की जा रही सप्त दिवसीय श्रीमद भागवत कथा के सातवें और आखिरी दिन रविवार की शाम कथा व्यास पण्डित ज्ञान चन्द्र द्विवेदी ने सुदामा चरित्र का भावपूर्ण वर्णन किया। कथा व्यास ने बताया कि भगवान के प्रति विश्वास का नाम सुदामा है। मित्रता विपन्नता सम्पन्नता देखकर नहीं की जाती है, सच्चा मित्र वही है जो मित्र के सुख दु:ख में काम आए। भगवान भाव के भूखे हैं।यह कथा आत्मज्ञान के लिए है ,उपदेश के लिए नहीं है। ईश्वर जगत के माता-पिता है सभी के भाव जान जाते है। सुदामा प्रकांड विद्वान थे ज्ञानी थे उनके ज्ञान का विनिमय धनार्जन के लिए नहीं है उनका ज्ञान भगवान के प्रसन्नता के लिए हैं।शास्त्रों में दरिद्र उसी कहा जाता है जिसको संतोष नहीं है, जो असंतुष्ट है वही दरिद्र है। कथा व्यास जी ने कहा कि श्रीमद्भागवत महापुराण की मांगलिक कथाओं का श्रवण करने से प्राणी इस भौतिक संसार के समस्त सुखों को भोग कर शरीर परित्याग के पश्चात भगवान के परमधाम को प्राप्त होता है ।ऋषि कुमार द्वारा शापित होने के बावजूद महाराज परीक्षित ने श्री शुकदेव जी महाराज श्रीमद् भागवत महापुराण की पाप विनाशिनी कथाओं को सुनकर भगवद्धाम को प्राप्त किया ।कथा व्यास ने सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा सुदामा श्री कृष्ण के परम मित्र, परम भक्त थे। वह निर्धन ब्राह्मण थे, फिर भी सुदामा इतने में ही संतुष्ट रहते थे। हरिभजन करते रहते थे ।अपनी पत्नी के कहने पर द्वारकाधीश श्री कृष्ण के पास गए ।श्री कृष्ण ने उनकी मन की बात को जानकर उनके सारे कष्ट हर लिए। श्री कृष्ण सुदामा की मित्रता से दिव्य परिभाषा स्थापित हुई। मित्रता अपने आप में एक परिपूर्ण संबंध है। श्रीमद् भागवत कथा में जीव को जीवन जीने की सच्ची सीख बताई गई है ।भक्त किस प्रकार अपने आराध्य को प्राप्त कर सकता है उसका मार्ग सरल शब्दों में बतलाया गया है। सुदामा चरित्र की कथा हमें निष्काम भक्ति सिखाती है ।भगवान केवल सरलता पर ही रीझते है। श्रीमद् भागवत कथा के दौरान मुख्य यजमान कमला देवी, विजय बहादुर सिंह, अरुण कुमार सिंह लल्ला, अनिल कुमार सिंह, डॉक्टर अविनाश सिंह, डॉक्टर अंजनी कुमार सिंह, डॉक्टर दुर्गेश कुमार, पूर्व ब्लाक प्रमुख शिव कुमार सिंह, शिक्षक राजेश दुबे प्रधानाचार्य केडी चौबे, अंकुर पाण्डेय, चित्रभान तिवारी सहित तमाम श्रोता शामिल रहे।