ललितपुर। सिद्धन रोड स्थित कला भवन में कलाविद् ओमप्रकाश बिरथरे द्वारा आयोजित विशिष्ट कला शिविर पेन्टिग विद् आयल कलर्स 25 मई से 22 जून 2025 तक का शुभारम्भ मुख्य अतिथि समाजसेवी डा0 राजकुमार जैन एवं विशिष्ट अतिथि गोविन्द नारायण रावत, संयोजक इन्टैक ललितपुर चैप्टर सन्तोष कुमार शर्मा, पूर्व प्रधानाचार्य श्रीमती शांति मालवीय एवं अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवल एवं माँ सरस्वती पूजन के साथ हुआ।
मुख्य अतिथि समाजसेवी राजकुमार जैन ने कहा कि शिविर में कलासाधकों के बीच बार बार आना, उनके तैयार किये गये चित्र देखकर मुझे एक सुखद अहसास कराते है। शिविर को देखकर ऐसा लगता है जैसे ललितपुर में कला का पुनर्जागरणकाल चल रहा है। तैल चित्रांकन शिविर बड़े शहरों में मंहगे संसाधनों में अल्प अवधि के लिए आयोजित किये जाते हैं। एक माह का उच्च स्तरीय आयल कलर शिविर आयोजित करना निश्चित ही प्रशंसनीय है, क्योंकि यह विधा आधुनिक एवं व्यवसायिक कला में खास जगह रखती है।
शिविर आयोजक ओमप्रकाश बिरथरे ने शिविर के विषय में बताते हुये कहा कि तैल चित्र तैल रंगो का उपयोग करके की जाने वाली एक अनूठी तकनीक है। इसके द्वारा बने हुये चित्र कालजयी होते है। जिसका लम्बा एवं समृद्ध इतिहास है। प्राचीन भारत से लेकर आधुनिक समय तक तैल चित्र कलाकारों को उनकी रचनात्मकता व्यक्त करने का एक शक्तिशाली माध्यम रही है। लियोनार्डो दा विंची, रम्ब्रांट और विनसेंट बानगांग, राजा रवि वर्मा जैसे विश्वप्रसिद्ध कलाकारों ने तैलचित्रकला को अपना पसन्दीदा माध्यम माना है। तैल चित्रण की शुरूआत सातवी शताब्दी में अफगान के बामियान की गुफाओं में बौद्ध कलाकारों द्वारा भित्ति चित्र बनाने में प्रथम बार प्रयोग किया गया। 15वीं शताब्दी में चित्रकला को जान बेन आइक ने एक नई ऊचाई दी और इसे एक लोकप्रिय कला तकनीक बनाने में सफल रहे। आधुनिक भारत में तैल चित्र के जनक राजा रवि वर्मा थे, जिन्होंने भारतीय पौराणिक पात्रों का जैसे राम, कृष्ण, नल-दमयन्ती आदि के चित्रों को तैल रंगों से चित्रित कर जन-जन में लोकप्रिय बनाया। बिरथरे ने बताया कि बिना किसी लाभ के इस तरह शिविर कला प्रतिभाओं के लिए दुर्लभ होते है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में पधारे एडवोकेट गोविन्द नारायण रावत ने कहा कि भारतीय चित्रकला का इतिहास अत्यन्त प्राचीन पाषाणयुग से शुरू होकर, रामायण काल महाभारत होते हुये आधुनिक काल तक फैला हुआ है। यह कला विभिन्न शैली और माध्यमों से समृद्ध हुई, जिसमें भित्ति, लघु चित्र और आधुनिक चित्रकला शामिल है।
संयोजक इन्टैक ललितपुर चैप्टर सन्तोष कुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय चित्रकला का इतिहास समृद्ध और विविध इतिहास है, जो भारतीय संस्कृति, धर्म और सामाजिक जीवन का प्रतिबिम्ब है। इसकी झलक आयोजित शिविर में भी देखने को मिलती है।
इस अवसर पर पूर्व प्रधानाचार्या श्रीमती शांति मालवीय ने कहा कि तैल चित्रकला एक समृद्ध कला है और यह निरन्तर साधना चाहती है। शिविर में आये सभी कलासाधक पूर्ण मन लगाकर कार्य करें और निरन्तर अभ्यास जारी रखे। शिविर में 33 कलासाधक प्रतिभाग कर रहे है।
इस अवसर पर संस्कार भारती संरक्षक गोविन्द नारायण व्यास, सूचना प्राद्योगिकी विद् विनोद त्रिपाठी, मानव आर्गनाईजेशन अध्यक्ष पुष्पेन्द्र सिंह, विद्यासागर साहू, श्रीमती सुधा शर्मा, राजरानी त्रिपाठी, ज्योति पाराशर, अनिल त्रिपाठी, अवधेश त्रिपाठी, गोविन्द राम सेन, गिरीश साहू, अनुराधा मोदी, सुरेश साहू, उदयभान सिंह, तरूण जामकर, जगदीप सोनी आदि उपस्थित रहे। शिविर के प्रबन्धन में महेश प्रसाद बिरथरे का विशेष योगदान रहा। कार्यक्रम का संचालन संस्कार भारती के अध्यक्ष ब्रजमोहन संज्ञा ने किया।
मुख्य अतिथि समाजसेवी राजकुमार जैन ने कहा कि शिविर में कलासाधकों के बीच बार बार आना, उनके तैयार किये गये चित्र देखकर मुझे एक सुखद अहसास कराते है। शिविर को देखकर ऐसा लगता है जैसे ललितपुर में कला का पुनर्जागरणकाल चल रहा है। तैल चित्रांकन शिविर बड़े शहरों में मंहगे संसाधनों में अल्प अवधि के लिए आयोजित किये जाते हैं। एक माह का उच्च स्तरीय आयल कलर शिविर आयोजित करना निश्चित ही प्रशंसनीय है, क्योंकि यह विधा आधुनिक एवं व्यवसायिक कला में खास जगह रखती है।
शिविर आयोजक ओमप्रकाश बिरथरे ने शिविर के विषय में बताते हुये कहा कि तैल चित्र तैल रंगो का उपयोग करके की जाने वाली एक अनूठी तकनीक है। इसके द्वारा बने हुये चित्र कालजयी होते है। जिसका लम्बा एवं समृद्ध इतिहास है। प्राचीन भारत से लेकर आधुनिक समय तक तैल चित्र कलाकारों को उनकी रचनात्मकता व्यक्त करने का एक शक्तिशाली माध्यम रही है। लियोनार्डो दा विंची, रम्ब्रांट और विनसेंट बानगांग, राजा रवि वर्मा जैसे विश्वप्रसिद्ध कलाकारों ने तैलचित्रकला को अपना पसन्दीदा माध्यम माना है। तैल चित्रण की शुरूआत सातवी शताब्दी में अफगान के बामियान की गुफाओं में बौद्ध कलाकारों द्वारा भित्ति चित्र बनाने में प्रथम बार प्रयोग किया गया। 15वीं शताब्दी में चित्रकला को जान बेन आइक ने एक नई ऊचाई दी और इसे एक लोकप्रिय कला तकनीक बनाने में सफल रहे। आधुनिक भारत में तैल चित्र के जनक राजा रवि वर्मा थे, जिन्होंने भारतीय पौराणिक पात्रों का जैसे राम, कृष्ण, नल-दमयन्ती आदि के चित्रों को तैल रंगों से चित्रित कर जन-जन में लोकप्रिय बनाया। बिरथरे ने बताया कि बिना किसी लाभ के इस तरह शिविर कला प्रतिभाओं के लिए दुर्लभ होते है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में पधारे एडवोकेट गोविन्द नारायण रावत ने कहा कि भारतीय चित्रकला का इतिहास अत्यन्त प्राचीन पाषाणयुग से शुरू होकर, रामायण काल महाभारत होते हुये आधुनिक काल तक फैला हुआ है। यह कला विभिन्न शैली और माध्यमों से समृद्ध हुई, जिसमें भित्ति, लघु चित्र और आधुनिक चित्रकला शामिल है।
संयोजक इन्टैक ललितपुर चैप्टर सन्तोष कुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय चित्रकला का इतिहास समृद्ध और विविध इतिहास है, जो भारतीय संस्कृति, धर्म और सामाजिक जीवन का प्रतिबिम्ब है। इसकी झलक आयोजित शिविर में भी देखने को मिलती है।
इस अवसर पर पूर्व प्रधानाचार्या श्रीमती शांति मालवीय ने कहा कि तैल चित्रकला एक समृद्ध कला है और यह निरन्तर साधना चाहती है। शिविर में आये सभी कलासाधक पूर्ण मन लगाकर कार्य करें और निरन्तर अभ्यास जारी रखे। शिविर में 33 कलासाधक प्रतिभाग कर रहे है।
इस अवसर पर संस्कार भारती संरक्षक गोविन्द नारायण व्यास, सूचना प्राद्योगिकी विद् विनोद त्रिपाठी, मानव आर्गनाईजेशन अध्यक्ष पुष्पेन्द्र सिंह, विद्यासागर साहू, श्रीमती सुधा शर्मा, राजरानी त्रिपाठी, ज्योति पाराशर, अनिल त्रिपाठी, अवधेश त्रिपाठी, गोविन्द राम सेन, गिरीश साहू, अनुराधा मोदी, सुरेश साहू, उदयभान सिंह, तरूण जामकर, जगदीप सोनी आदि उपस्थित रहे। शिविर के प्रबन्धन में महेश प्रसाद बिरथरे का विशेष योगदान रहा। कार्यक्रम का संचालन संस्कार भारती के अध्यक्ष ब्रजमोहन संज्ञा ने किया।