कर्नाटक को झटका! सर्वोच्च न्यायालय ने कावेरी जल प्राधिकरण के आदेश में हस्तक्षेप से किया इनकार

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आदेश के तहत कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण ने कर्नाटक को आदेश दिया था कि वह तमिलनाडु को 5000 क्युसेक पानी जारी करे। सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश में कोई भी हस्तक्षेप से इनकार कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। दरअसल आदेश के तहत कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण ने कर्नाटक को आदेश दिया था कि वह तमिलनाडु को 5000 क्युसेक पानी जारी करे। प्राधिकरण ने 18 सितंबर को यह आदेश दिया था और आदेश के तहत कर्नाटक को 28 सितंबर तक तमिलनाडु को पानी देना था। हालांकि सूखे जैसी स्थिति का सामना कर रहे कर्नाटक ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जहां से अब कर्नाटक सरकार को झटका लगा है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकरण के आदेश में कोई भी हस्तक्षेप से इनकार कर दिया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकरण को हर 15 दिन में बैठक करने का निर्देश दिया है।
तमिलनाडु की याचिका से फिर चर्चा में आया विवाद
कावेरी जल विवाद बीते दिनों उस वक्त फिर चर्चा में आ गया, जब तमिलनाडु सरकार ने कर्नाटक से अपने जलाशय के जल में से 24 हजार क्युसेक पानी प्रतिदिन देने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। वहीं कर्नाटक का कहना है कि इस बार कम बारिश की वजह से राज्य को सूखे जैसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। इस वजह से कर्नाटक ने पानी छोड़ने में असमर्थता जताई थी।
क्या है कावेरी जल विवाद
कावेरी नदी को ‘पोन्नी’ कहा जाता है। यह दक्षिण पश्चिम कर्नाटक के पश्चिमी घाट की ब्रह्मगिरी पहाड़ी से निकलती है। यह नदी कर्नाटक से तमिलनाडु राज्यों में होकर पुडुचेरी से होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है। कावेरी जल विवाद आजादी से पहले के दो समझौतों 1892 और 1924 के चलते है। इन समझौतों के तहत किसी भी निर्माण परियोजना, जैसे कावेरी नदी पर जलाशय के निर्माण के लिए ऊपरी तटवर्ती राज्य को निचले तटवर्ती राज्य की अनुमति लेना जरूरी है। साल 1974 में कर्नाटक ने तमिलनाडु की सहमति के बिना पानी मोड़ना शुरू कर दिया, जिससे दोनों राज्यों में पानी को लेकर विवाद हो गया। इस मुद्दे को हल करने के लिए साल 1990 में कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण की स्थापना की गई।

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