गाजियाबाद। मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि बर्ड फ्लू (एच5एन1) मुख्यतः पक्षियों की बीमारी है लेकिन यह अन्य जंगली पशु पक्षियों एवं मनुष्यों में भी बीमारी फैलती है। यह बीमारी पहली बार 1997 में मनुष्यों में हुई थी और 60% मृत्यु हुई थी। बर्ड फ्लू का वायरस कमजोर होता है, डिसइनफेक्टेंट केमिकल के संपर्क में आने पर नष्ट हो जाता है तथा 70 डिग्री तापमान पर 30 मिनट तक गर्म करने पर भी यह वाइरस नष्ट हो जाता है। अप्रैल 2024 में टैक्सास डेरी फार्म अमेरिका में एक मनुष्य को या बीमारी हुई थी जो अनपाश्चराइज्ड मिल्क पीने से हुई थी। बीमारी डॉमेस्टिक बिल्ली, लोमड़ी, सील में भी पाई गई थी। वर्तमान में गोरे वाला रेस्क्यू सेंटर महाराष्ट्र में तीन टाइगर तथा एक तेंदुआ में बीमारी होने से मृत्यु की पुष्टि हुई है तथा जैसलमेर में 8 कुरैंजा पक्षियों में इस बीमारी की पुष्टि हुई है। बीमार पक्षियों में मुख्यतः श्वसन तंत्र संबंधी लक्षण प्रकट होते हैं। बुखार रहता है। हरे लाल रंग का दस्त करते हैं। आंख और नाक से लाल रंग का पानी आता है। कलगी और पैरों का रंग बैंगनी हो जाता है। पक्षियों के गर्दन और आंख के निचले हिस्से में सूजन आती है। अंडा उत्पादन में कमी, सांस लेने में तकलीफ, खांसी, एक स्थान पर शांत बैठे रहना तथा गर्दन आदि में सूजन इस बीमारी के लक्षण है लेकिन बीमारी का मुख्य लक्षण है बहुत अधिक संख्या में मृत्यु होना और यह मृत्यु 50 से 100% होती है। यह बीमारी मुख्यतः प्रवासी पक्षियों साइबेरियन क्रेन आदि के एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने पर फैलती है। जंगली जल मुर्गियां आदि इस बीमारी के रिजर्वायर होते हैं। मतलब कि उनके अंदर कोई लक्षण प्रकट नहीं होता है। बीमारी मुख्यतः दो प्रकार की होती है- पहले प्रकार बीमारी को लो पैथोजेनिक एवियन इन्फ्लूएंजा (एलपीएआई) कहलाती है जो मुख्यतः एच9एन2 सब टाइप के वायरस से होती है तथा दूसरी बीमारी हाईली पैथोजेनिक एवियन इनफ्लुएंजा (एच5एन2) सब टाइप वायरस से होती है। इस बीमारी में अधिकतम 50 से 100% तक मृत्यु होती है। बर्ड फ्लू का वायरस लंबे समय तक कम तापमान पर जीवित रहता है। इसीलिए प्रत्येक वर्ष जाड़े की मौसम में यह बीमारी अधिकतम देखने को मिलती है। बीमारी की वाइल्ड बर्ड से पोल्ट्री फार्म तथा पोल्ट्री फार्म से मनुष्य में फैलने की संभावना बनी रहती है। बर्ड फ्लू से मरने वाले पक्षियों की पोस्टमार्टम नहीं किया जाता है। पूरे मृत पक्षी को ही सील बंद कर कोल्ड चेन में उच्च सुरक्षा पशु रोग प्रयोगशाला भोपाल को भेजा जाता है। संभावित क्षेत्र से पांच मृत पक्षियों को तथा 10 जीवित पक्षियों के सीरम, नेजल, क्लोएकल सैंपल लेकर जांच कराई जाती है। बचाव रोग से बचाव के लिए जरूरी है कि मुर्गी फार्म पर साफ सफाई रखी जाए। बायो सिक्योरिटी मेंटेन रखा जाए। बाहरी किसी व्यक्ति, जंगली पक्षियों को पोल्ट्री फार्म में प्रवेश न दिया जाए।
मुर्गी, बत्तख, मछली, शूकर पास-पास न पाले जाए। बीमार पक्षियों की बीट से दूर रहे। मृत प्रवासी पक्षियों, प्रभावित कुक्कुट प्रक्षेत्रों के पक्षियों को संतुलित पशु आहार, स्वस्थ चूजे, उत्तम रखरखाव की विधि अपनाने पर बल दे। मृत पक्षियों का वैज्ञानिक विधि से डिस्पोजल डिस्पोजल पिट में करने से बीमारी की फैलने की संभावना कम हो जाती है। जनपद गाजियाबाद में अब तक पक्षियों से 400 सैंपल कलेक्ट करके आईवीआरआई बरेली प्रेषित किया गया है लेकिन कोई भी सैंपल पॉजिटिव नहीं आया है। जनपद में पशुपालन विभाग द्वारा 4 रैपिड रिस्पांस टीम का गठन किया गया है जो सूचना मिलने पर मौके पर जाकर मृत / जीवित पक्षियों का निरीक्षण करेंगे। सीरम सैंपल लेंगे तथा आवश्यकता अनुसार भोपाल भेजेंगे।सभी जनपदवासियों से अपील है कि बर्ड फ्लू से सम्बंधित किसी भी प्रकार की जानकारी प्राप्त होने पर कृपया कर पशु पालन विभाग को सूचित करें। बर्ड फ्लू के प्रति जागरूकता, सतर्कता और सावधानी से बचाव सम्भव है।