परिषदीय विद्यालयों में अभी तक नहीं पहुंची पूरी किताबें, बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ 

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ओबरा, सोनभद्र। आदिवासी बाहुल्य सोनभद्र अति पिछड़ा जनपदों में आता है, जहाँ परिषदीय विद्यालयों के बच्चे आधी अधूरी पुस्तकों के वितरण का दंश झेल रहे हैं। जनपद सोनभद्र उत्तरप्रदेश का आखरी जिला है जो नीति आयोग के आकांक्षी जनपद के तौर पर चयनित है। जिले में कई महत्वपूर्ण विकास कार्यों के साथ ही बेहतर शिक्षा व्यवस्था के लिए तमाम सरकार द्वारा प्रयास किये जा रहे हैं, इसके बावजूद भी यहाँ शिक्षा व्यवस्था बदहाल है। बताते चलें कि, परिषदीय विद्यालयों में नई किताबें अभी भी उपलब्ध नही कराई गयी है। खासकर सबसे ज्यादा परेशानी उन बच्चों को है जिनका 1-2 में अभी नया-नया दाखिला हुआ है। 1-2 कक्षा के बच्चों की किताबें न मिलने के कारण इनके पठन-पाठन में काफी मुश्किलें आ रही है जिसका सीधा असर इन बच्चों के भविष्य पर पड़ रहा है। सोनभद्र के शिक्षा व्यवस्था की हकीकत आपको हैरान और परेशान कर सकती है। सबसे महत्वपूर्ण तो यह है कि, इस जनपद सोनभद्र को नीति आयोग द्वारा गोद लिया गया और आज नई शिक्षा सत्र के शुरू होने के इतने महीनों के बाद भी यहां के परिषदीय विद्यालयों के बच्चों को महत्वपूर्ण किताबें उपलब्ध नही करवाई गई जो चिंता का विषय है। बताते चलें कि, परिषदीय विद्यालय में नामांकन प्रतिशत बढ़ाने को लेकर के शासन द्वारा शिक्षकों के काफी दबाव बनाया जा रहा तो वहीं परिषदीय विद्यालयों में शिक्षा व्यवस्था बेहतर नहीं होने की वजह से तमाम लोग भारी भरकम फीस दे करके अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाने के लिए विवश है या तो मजबूर हैं। शासन यह दावा करती है कि, जिले की शिक्षा व्यवस्था सुदृढ़ है मगर यहां जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। अब देखना यह है कि, कब तक परिषदीय विद्यालयों के बच्चों तक महत्वपूर्ण किताबें पहुंचती है। कब उनकी बेहतर शिक्षा व्यवस्था बहाल होती है। किताबों की व्यवस्था न होना बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है, यह अनदेखी बच्चों के भविष्य के लिए खतरनाक साबित होगी।

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