परंपरा और नवाचार का संगम: खेती में वैज्ञानिक चेतना की नई पहल

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भाटपार रानी-देवरिया /कृषि विज्ञान केंद्र (भाकृअनुप – भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी), मल्हना, देवरिया एवं कृषि विभाग, देवरिया के संयुक्त तत्वावधान में विकसित कृषि संकल्प अभियान का 14वां दिन सलेमपुर विकासखंड के अंतर्गत 9 ग्रामों – बनकटा मिश्रा, इटावा चन्द्रौली, मलकौली, दुमवलिया, पड़ानी तिवारी, बनारही, सहला, निजामाबाद एवं बिशुनपुरा में आयोजित किया गया। इस अभियान के अंतर्गत पर्यावरणीय संरक्षण, जैविक खेती, पशुपालन और ग्रामीण उद्यमिता से संबंधित तकनीकी जानकारी किसानों तक पहुँचाई गई। बिशुनपुरा गांव में हुए मुख्य कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश सरकार की ग्रामीण विकास मंत्री एवं सलेमपुर की विधायक विजय लक्ष्मी गौतम ने फ़ोन कॉल के माध्यम से माइक पर जुड़कर किसानों को संबोधित किया और कहा कि खेती सिर्फ आजीविका नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति की रीढ़ है। यदि परंपरागत ज्ञान को वैज्ञानिक सोच से जोड़ा जाए, तो खेती आत्मनिर्भरता और समृद्धि का सशक्त माध्यम बन सकती है। कृषि विज्ञान केंद्र देवरिया के अध्यक्ष डॉ. मांधाता सिंह ने किसानों से मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए प्राकृतिक खेती अपनाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि मिट्टी को जीवंत रखने के प्रयासों से न केवल उत्पादन में वृद्धि होगी, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए संसाधनों का संरक्षण भी संभव होगा। उप निदेशक कृषि सुभाष मौर्य ने किसानों को मृदा परीक्षण, उर्वरक चयन और मृदा स्वास्थ्य कार्ड की उपयोगिता के विषय में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि यह वैज्ञानिक तरीका खेती को अधिक लाभकारी और पर्यावरणीय दृष्टि से सुरक्षित बनाता है। वैज्ञानिक (उद्यान) डॉ. रजनीश श्रीवास्तव ने किसानों से जैविक उर्वरकों और उन्नत किस्मों की सब्जियों को अपनाने का आग्रह किया। उन्होंने बताया कि मेडों पर खेती और पानी बचाने की विधियां भविष्य की कृषि की रीढ़ बनेंगी। वैज्ञानिक (सस्य विज्ञान) डॉ. कमलेश मीना ने कहा कि बीजामृत, जीवामृत, नीमास्त्र जैसी विधियों को अपनाकर किसान रसायनों पर निर्भरता घटा सकते हैं और साथ ही फसल की गुणवत्ता में भी सुधार ला सकते हैं। कार्यक्रम में वैज्ञानिक (गृह विज्ञान) जय कुमार ने ग्रामीण महिलाओं को स्वरोजगार की दिशा में प्रेरित करते हुए कहा कि गांव की महिलाएं यदि स्थानीय जैविक संसाधनों के उपयोग से खाद्य प्रसंस्करण, मशरूम उत्पादन और मधुमक्खी पालन जैसे कार्यों को अपनाएं, तो प्रत्येक घर एक लघु उद्योग केंद्र बन सकता है। उन्होंने कहा कि महिलाएं पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक प्रशिक्षण से जोड़कर न केवल आत्मनिर्भरता की मिसाल बन सकती हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन से लड़ाई में भी सक्रिय भूमिका निभा सकती हैं। वैज्ञानिक (पशु जैव प्रौद्योगिकी) डॉ. अंकुर शर्मा ने कहा कि पशुपालन को वैज्ञानिक ढंग से अपनाने पर यह सतत आय का मजबूत स्रोत बन सकता है। स्थानीय संसाधनों पर आधारित चारा एवं देखभाल की तकनीकों से पशुओं की उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है। भूमि संरक्षण अधिकारी संतोष मौर्य ने खेत की मेड़ों के बहुउद्देशीय उपयोग पर बल दिया। उन्होंने बताया कि मेड़ों पर पौधरोपण और जलसंचयन की तकनीकों से मृदा अपरदन को रोका जा सकता है और जल संरक्षण को बढ़ावा मिल सकता है। जिला कृषि अधिकारी मृत्युंजय सिंह ने कहा कि जैविक खेती आज केवल तकनीक नहीं बल्कि एक आंदोलन है, जो पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ किसानों की आय में स्थायी वृद्धि सुनिश्चित करता है। कृषि विभाग के सहायक पौध संरक्षण अधिकारी इंद्रसेन विश्वकर्मा ने रासायनिक कीटनाशकों के स्थान पर जैविक और एकीकृत कीट प्रबंधन विधियों के उपयोग को बढ़ावा देने की बात कही, जिससे फसलें अधिक सुरक्षित और टिकाऊ बन सकें। कार्यक्रम में गन्ना विभाग, पशुपालन विभाग और इफको के प्रतिनिधियों ने किसानों को पर्यावरण-अनुकूल कृषि तकनीकों, फसल बीमा योजनाओं और नवीनतम उपकरणों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि फसल बीमा योजनाएं किसानों को न केवल नुकसान की भरपाई का साधन देती हैं, बल्कि उन्हें नई तकनीकों को आत्मविश्वास के साथ अपनाने के लिए प्रेरित भी करती हैं। इस आयोजन में लगभग 2100 किसानों ने भाग लिया और विभिन्न विषयों पर विशेषज्ञों से तकनीकी जानकारी प्राप्त की। विकसित कृषि संकल्प अभियान के अंतर्गत यह प्रयास निरंतर जारी है, जिसके माध्यम से गांव-गांव जाकर किसानों को टिकाऊ कृषि की उन्नत तकनीकों से जोड़ा जा रहा है।

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