भारतीय ज्ञान परंपरा से रोजगार,आत्मनिर्भरता और समाज का निर्माण होता है : कुलपति प्रो. राय

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सीकर। पंडित दीनदयाल उपाध्याय शेखावाटी विश्वविद्यालय,सीकर की ओर से भारतीय ज्ञान परंपरा और पंडित दीनदयाल उपाध्याय का योगदान विषय पर गुरुग्राम में तीन दिवसीय प्रदर्शनी लगाई गई। देशभर से आए शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों के लिए यह प्रदर्शनी विशेष आकर्षण का केंद्र रही।
भारतीय शिक्षण मंडल के युवा आयाम की ओर से अखिल भारतीय शोधार्थी सम्मेलन ‘विविभा 2024’ (विजन फार विकसित भारत) और प्रदर्शनी का आयोजन एसजीटी विश्वविद्यालय, गुरुग्राम में किया गया। सुरेंद्र भटनागर कृत वैदिक वाग्विद्या दर्शन दीर्घा में भारतीय ज्ञान परंपरा और वर्ण—अक्षर यात्रा को करीब 200 तस्वीरों के माध्यम से बेहद सरल तरीके से दर्शाया गया।
इस अवसर पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय शेखावाटी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डॉ.) अनिल कुमार राय ने बताया कि प्रदर्शनी का मुख्य उद्देश्य भारतीय ज्ञान परंपरा से आज के युवाओं को रूबरू कराना था। प्रो. राय ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा न सिर्फ रोज़गार उपलब्ध कराती है, बल्कि व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाने के साथ अच्छे समाज का निर्माण भी करती है। उन्होंने बताया कि आज भी भारतीय ज्ञान परंपरा पांडुलिपियों में सुरक्षित है। हमारी ज्ञान परम्परा है मानवता की आधारशिला : प्रो अनिल राय
प्रो. राय ने छात्रों के साथ-साथ शिक्षकों से भी आह्वान किया कि वो भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुसार शोध कार्यों के लिए प्रयास करें। प्राचीन ग्रंथों में आज भी ज्ञान मौजूद है यदि इन पर गहन शोध किया जाए तो मानवता की कई समस्याओं को हल किया जा सकता है। हमारी ज्ञान परम्परा समृद्ध है, जो हमारी मानवता की आधारशिला है। यहीं से व्यक्ति का सामाजिक निर्माण होता है। श्रेठ समाज के निर्माण में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। उन्होंने बताया कि शेखावाटी विवि की यह प्रदर्शनी आगंतुकों, शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों के लिए विशेष आकर्षण बनी रही। आगंतुकों ने इस प्रदर्शनी के माध्यम से भारतीय ज्ञान परंपरा को समझने और सीखने की कोशिश भी की। प्रदर्शनी में भारतीय ज्ञान परंपरा, भारतीय‌ सनातन मूल्यों का आत्म भारत निर्माण में योगदान, पर्यावरण संरक्षण, भारतीय सनातन संस्कृति के तत्व, अखण्ड भारत, भारतीय सांस्कृतिक विरासत एवं धरोहर, भारतीय इतिहास, वांग्मय, संस्कृति, ज्ञान, विज्ञान, कला, विधि, न्याय, साहित्य,भारतीय शिक्षण-प्रशिक्षण पद्धति, भारतीय वाणिज्य एवं अर्थशास्त्र सामाजिक सुरक्षा, प्राचीन भारत में महिला सशक्तीकरण दृष्टि, जैसे महत्वपूर्ण विषय शामिल थे।
प्रदर्शनी का उद्घाटन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत और नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी ने किया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अध्यक्ष डॉ एस सोमनाथ, रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. सतीश रेड्डी, भारतीय नौसेना अध्यक्ष दिनेश कुमार त्रिपाठी, भारतीय शिक्षण मंडल के राष्ट्रीय संगठन मंत्री शंकरानंद बी.आर. एवं भारतीय शिक्षण मंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ सच्चिदानंद जोशी, एमडीएस विवि अजमेर और अटलबिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल के पूर्व कुलपति मोहनलाल छीपा, निम्स विवि के प्रो वाइस चांसलर प्रो. अमेरिका सिंह, पंडित दीनदयाल उपाधाय शेखावाटी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डॉ.) अनिल कुमार राय, अखिल भारतीय युवा गतिविधि टोली सदस्य एवं युवा गतिविधि प्रमुख, भारतीय शिक्षण मंडल, जयपुर प्रां​त जयपुर के डॉ.मुकेश शर्मा समेत देशभर के कई विद्वानों, शिक्षकों और शोधार्थियों ने प्रदर्शनी का अवलोकन किया।

शोध और नवाचारों का प्रदर्शन
विविभा : 2024 प्रदर्शनी में ऋषि कणाद से कलाम तक की भारत की यात्रा का प्रदर्शन किया गया। इस दौरान देशभर के शैक्षणिक शोध संस्थानों और सरकारी व निजी विश्वविद्यालयों ने “भारतीय शिक्षा”, “विकसित भारत के लिए दृष्टि” और “भविष्य की तकनीक” जैसे विषयों पर अपने शोध और नवाचारों का प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शनी के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया गया कि सनातनी शिक्षा से लेकर आधुनिक शिक्षा तक के सफर में भारत कहां है। भारतीय ज्ञान परम्परा व शोध से बोध की थीम पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करते हुए एक प्रदर्शनी भी लगाई् गई। प्रदर्शनी में प्राचीन गुरुकुलों से लेकर, वर्तमान तकनीकी अनुकूलन समेत भारतीय शिक्षा के विकास और छत्रपति शिवाजी के समय के अस्त्र-शस्त्रों से लेकर भारतीय वायु सेना की ब्रह्मोस मिसाइल तक को विभिन्न स्टालों पर प्रदर्शित किया गया। कई सेंट्रल विवि, आईआईटी, इसरो, डीआरडीओ, ब्रहमोस और भारतीय सेना और वायु सेना की स्टॉल भी आकर्षण का केन्द्र रहीं।


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