भगवान सूर्य का प्रिय पर्व स्नान, दान का महापर्व मकर संक्रांति 

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भदोही। मकर संक्रांति का पर्व आज मंगलवार 14  जनवरी को दिन  0 3 बजकर 27  मिनट पर सूर्य का प्रवेश अपने पुत्र शनि के घर मकर राशि पर हो जाएगा। ईद सम्बन्ध में आचार्य शिव सागर पांडेय ने बताया  कि धर्मशास्त्र के अनुसार यदि जब सूर्य मकर राशि पर प्रवेश करते हैं तो उसके आठ दण्ड पूर्व से लेकर आठ दण्ड बाद तक का समय पुण्यकाल माना जाता है इसलिए मंगलवार को सुबह सात बजकर सताइस मिनट पर पुण्यकाल प्रारंभ हो जाएगा इसी समय से लेकर सूर्यास्त होने तक दान की प्रक्रिया चलेगी। रात 11 बजकर सताइस मिनट तक पुण्यकाल रहेगा जरूर लेकिन रात्रि के समय दान लेना व देना निषिद्ध बतलाया गया हैं। उन्होंने बताया कि मकर संक्रांति भगवान सूर्य का प्रिय पर्व है। सूर्य की साधना से त्रिदेवों की साधना का फल प्राप्त होता है। ज्ञान-विज्ञान, विद्वता, यश, सम्मान, आर्थिक समृद्धि सूर्य से ही प्राप्त होती है। सूर्य इस ग्रह मंडल के स्वामी हैं ऐसे में सूर्योपासना से समस्त ग्रहों का कुप्रभाव समाप्त होने लगता है। उन्होंनें बताया कि सूर्य प्रत्येक मास में एक राशि पर भ्रमण करते हुए 12 माह में सभी 12 राशियों का भ्रमण कर लेते हैं। फलत: प्रत्येक माह की एक संक्रांति होती है। सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे मकर संक्रांति कहते हैं। इसका महत्व इसलिए है क्योंकि इस दिन सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। उत्तरायण काल को ही प्राचीन ऋषियों ने साधनाओं का सिद्धिकाल व पुण्यकाल माना है। मकर संक्रांति सूर्योपासना का महापर्व है। मकर से मिथुन तक की छह राशियों में छह महीने तक सूर्य उत्तरायण रहते हैं तथा कर्क से धनु तक की छह राशियों में छह महीने तक सूर्य दक्षिणायन रहते हैं। कर्क से मकर की ओर सूर्य का जाना दक्षिणायन तथा मकर से कर्क की ओर जाना उत्तरायण कहलाता है। सनातन धर्म के अनुसार उत्तरायण के छह महीनों को देवताओं का एक दिन और दक्षिणायन के छह महीनों को देवताओं की एक रात्रि मानी जाती है। बताया कि  दिसंबर माह में सूर्य जब धनु व मीन राशि में गोचर करते हैं तो खरमास या मलमास का प्रारंभ हो जाता है. वहीं, जब सूर्य का धनु से मकर राशि में ग्रह परिवर्तन होता है तो उसे मकर संक्रांति कहा जाता है. हिंदू धर्म में मकर संक्रांति को बेहद शुभ माना गया है. इस दिन के बाद से कई मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं. आज भी ग्रामीण स्थानों पर इस दिन विशेष परंपरा के साथ पूजा-पाठ किया जाता है. स्नान दान के अलावा 14 कौड़ियों और एक दीपक जलाकर भगवान की पूजा की जाती है. कहा जाता है कि इससे मां लक्ष्मी की कृपा बरसती है. घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायनको देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है।  ऐसी मान्यता है कि इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिसे मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पीतामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।

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