जमानियां। नगर कस्बा बाजार में ईद मिलाद उन नबी की औमें पैदाई के मौके पर जुलूस मोहम्मदी निकाला गया। सैकड़ों लोग अपने हाथों में मोहम्मदी झंडा लिए चल रहे थे। कस्बा के सभी मुस्लिम बस्तियों में जुलूस भ्रमण किया। इस दौरान जुलूस में शामिल छोटे बड़े सभी को मुंह मीठा कराकर इस्तेख़बाल किया। बताया जाता है। कि दुनिया भर के मुस्लिम समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला एक त्योहार है। यह इस्लाम के संस्थापक पैगंबर मुहम्मद के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस्लामी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी-अल-अव्वल में, मुस्लिम समुदाय द्वारा बारावफ़ात का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। धर्म गुरुओं के अनुसार मुस्लिम धर्म के अनुसार बारावफात को ( मिलाद उन नबी) कहा जाता है। सुन्नी मुसलमानों के अनुसार बारावफात या मिलाद-उन-नबी 5 सितंबर, शुक्रवार को मनाया गया। शाही जामा मस्जिद के सेकेट्री मौलाना तनवीर रजा ने बताया कि बारावफात या ईद मिलाद उन नबी इस्लामी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी-अल-अव्वल में मनाया जाता है। हालाँकि पैगंबर मुहम्मद के जन्म की सही तारीख मुस्लिम समुदाय के सुन्नी संप्रदायों के अनुसार सुन्नी विद्वान रबी-अल-अव्वल की 12 वीं तारीख को पैगंबर मुहम्मद की जन्मतिथि मानते हैं। जबकि शिया विद्वान रबी-अल-अव्वल की 17 वीं तारीख को उनकी जन्मतिथि मानते हैं। उन्होंने बताया कि जिस तारीख को पैगंबर मुहम्मद का जन्म हुआ। और जिस तारीख को उनकी मृत्यु हुई। वह एक ही है। बारावफात नाम बारह से लिया गया है। जिसका अर्थ है। बारह जो संभवतः रबी-अल-अव्वल के महीने में पैगंबर की बीमारी के 12 दिनों का संदर्भ है। मिलाद-उन-नबी एक उर्दू मुहावरा है। जिसका शाब्दिक अर्थ है। पैगंबर का जन्म। हालाँकि दूसरा लोकप्रिय नाम मौलिद अरबी मूल का है। जिसका अर्थ है जन्म देना। रजा ने बताया कि पैगंबर मुहम्मद का नाम मुहम्मद अब्दुल्लाह था। और उनका जन्म 570 ई. में अरब के शहर मक्का में आमना खातून के यहाँ हुआ था। वे इस्लामी धर्म के संस्थापक और आदम, ईसा, अब्राहम और अन्य पैगम्बरों के बाद एकेश्वरवाद के सिद्धांत के अंतिम पैगम्बर थे। मौलाना तनवीर रजा ने कहा कि मुहम्मद छह साल की उम्र में अनाथ हो गए थे। और उनका पालन-पोषण उनके दादा अबू तालिब और उनकी पत्नी फ़ातिमा बिन्त असद ने किया था। बचपन में, मुहम्मद रोज़मर्रा के कामों से बचकर मक्का शहर के पास स्थित हीरा गुफा में घंटों प्रार्थना करते थे। जब वह 40 वर्ष के थे। तब उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। ऐसा माना जाता है कि गुफा में जिब्रील (एक देवदूत) ने उनसे मुलाकात की थी। यह लगभग 610 ईस्वी का समय था। और यही वह समय था जब जिब्रील ने मुहम्मद को कुरान की शुरुआत बताई थी। बाद में मुहम्मद ने सार्वजनिक रूप से इल्हाम का प्रचार करना शुरू कर दिया। उन्होंने खुद को ईश्वर का दूत बताया और ईश्वर एक है। के सिद्धांत को प्रतिपादित किया और कहा कि इस्लाम के प्रति पूर्ण समर्पण ही एकमात्र संभव समाधान है। शुरुआत में मुहम्मद के अनुयायी कम थे। और उन्हें मक्का के बहुदेववादियों, जो अनेक देवताओं में विश्वास करते थे। से कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। 615 ई. में, अपने अनुयायियों को अभियोजन से बचाने के लिए, मुहम्मद ने उन्हें अक्सुम साम्राज्य भेज दिया, जो आज के उत्तरी इथियोपिया और इरिट्रिया राज्य का निर्माण करता है। नूरी मस्जिद लोदीपुर के इमाम असरफ करीम कादरी ने बताया कि सात साल बाद 622 ई. में, पैगंबर मुहम्मद और उनके अनुयायी मक्का से 300 किलोमीटर उत्तर में मदीना शहर चले गए। कथित तौर पर हत्या के डर से पैगंबर मुहम्मद के मक्का से पलायन की इस विशेष घटना को हिजरी कहा जाता है और यह इस्लामी हिजरी कैलेंडर की शुरुआत का प्रतीक है। उन्होंने आगे विस्तार से रौशनी डालते हुए बताया कि मदीना पहुँचने के कुछ ही समय बाद पैगंबर मुहम्मद ने मदीना का एक चार्टर तैयार किया। जिसे मदीना का संविधान भी कहा जाता है। उन्होंने मदीना के विभिन्न कबीलों को एकजुट किया। और मदीना तथा मक्का के कबीलों के बीच कई बार युद्ध लड़े। दिसंबर 629 में, मुहम्मद ने 10,000 सैनिकों की एक सेना इकट्ठा की और मक्का शहर की ओर कूच किया। यह सेना अन्य धर्मों से धर्मांतरित मुसलमानों से बनी थी। असरफ ने बताया कि मुहम्मद की मक्का विजय को कम विरोध का सामना करना पड़ा। और उनकी सेना ने न्यूनतम रक्तपात के साथ विजय प्राप्त की। 632 ई. में, वह अपनी सभी पत्नियों के साथ विदाई तीर्थयात्रा (हज) पर गए और अपनी अनुपस्थिति में अबू दुजाना अंसारी को मक्का का राज्यपाल नियुक्त किया। घटनाक्रम के अनुसार, तीर्थयात्रा से लौटने के कुछ महीनों बाद ही मुहम्मद की बीमारी से मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के समय तक, अरब प्रायद्वीप के अधिकांश लोग सफलतापूर्वक इस्लाम में परिवर्तित हो चुके थे। और मुहम्मद को उनकी मृत्यु तक (अल्लाह) से जो रहस्योद्घाटन प्राप्त हुए। वे पवित्र कुरान की आयतें बनीं। मिलाद उन नबी का त्यौहार 11 वीं शताब्दी से मनाया जा रहा है। इस त्यौहार को पहली बार 1588 में तुर्की में आधिकारिक अवकाश घोषित किया गया था उक्त मौके पर मौलाना जैनुलआब्दीन, मौलाना जुल्फेकार, हाफिज इमाम मिन्सर रजा, असलम पान वाले, हाजी गुलाम मोहम्मद खान, दानिश मंसूरी, शाहिद जमाल मंसूरी, शांति एकता कमेटी के सरपरस्त नेसार अहमद खान वारसी, आरिफ मंसूरी, शहजाद अली, सलीम इदरीसी, वारसी, निगार खान, नेहाल मंसूरी, इजहार खान, कमाल मंसूरी, माहिर कमाल अंसारी, अरशद मंसूरी, शमीम खान, बेलाल मंसूरी, टीपू खान, हैदर खान, कामरान खान, वकील खान, अकील अजहर, शमीम सिद्दीकी, जमाल मंसूरी, सैयर खान, हाजी रफीक कुरैशी, मोहम्मद कैफ मंसूरी, नेहाल खान, प्रिंस खान, आरिफ खान वारसी, शाबीर कुरैशी, हयात वारिस खान, परवेज आलम, ताबिश मंसूरी, सफीक कुरैशी, शमीम फरीदी, अफजाल मंसूरी, रुस्तम अली, सैयद खुर्शीद सिद्दीकी, ताबिश अली, इरफान खान, मोहम्मद कलाम राईन, सोनू खान, आरिफ मंसूरी, सहित सैकड़ों मुस्लिम बंधु शामिल रहे। इस दौरान आपसी भाईचारगी बनाए रखने के लिए कोतवाली प्रभारी निरीक्षक प्रमोद कुमार सिंह मय पुलिस कर्मियों के साथ साथ एवं तहसीलदार राम नारायण वर्मा जुलूस के आगे चलते रहे।