अलीगढ़/सिद्धार्थ गौतम शिक्षण एवं संस्कृति समिति द्वारा संचालित डॉ बी आर अंबेडकर जन्म शताब्दी महाविद्यालय एवं श्री प्यारेलाल आदर्श इंटर कॉलेज धनसारी के संयुक्त तत्वावधान में भदंथआनंद कौशल्यायन की जयंती पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
सर्वप्रथम डॉ अंबेडकर और डॉ भदंत आनंद कौशल्यायन के चित्र के समीप प्राचार्य प्रधानाचार्य सहित समस्त स्टाफ ने दीप प्रज्वलन और पुष्पार्पण किया। संगोष्ठी का प्रारंभ बुद्ध वंदना के साथ किया गया। सर्वप्रथम डॉ दिनेश कुमार ने भंते आनंद कौशल्यायन के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा भंते जी का जन्म 5 जनवरी 1905 को पिता लाला रामशरण दास के यहां गांव सुहाना अंबाला पंजाब में हुआ था। आपके बचपन का नाम हर नारायणदास था आप प्रारंभ से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। प्रधानाचार्य मेघ सिंह ने कहा भंते जी ने जातक कथाओं का अनुवाद किया था । आपकी बौद्ध धर्म में गहरी आस्था थी हरि ओम मोहन ने कहा भदंत कौशल्यायन ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के साथ रहे थे। शशि पाल सिंह ने कहा भदंत आनंद कौशल्यायन श्रीलंका विद्यालंकार विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे थे आपकी पाली भाषा पर अच्छी पकड़ थी। देश विदेश में बौद्ध धर्म और दर्शन का प्रचार प्रसार घूम-घूम किया था।अन्य वक्ताओं में राजवीर सिंह, मक्खन सिंह ,गीतम सिंह ,लव कुश ,बॉबी कुमार गौतम ,कुमारी इरहा ,संजय कुमार सहित अन्य स्टाफ ने भी संगोष्ठी में भाग लिया।
अध्यक्षीय संबोधन में प्राचार्य ने कहा कि भदंत आनंद कौशल्यायन महात्मा गांधी के संपर्क में वर्धा में रहे और वर्धा परिषद के 10 वर्ष तक प्रधानमंत्री भी रहे । आपने समता मूलक समाज और अखंड भारत रहे इसका प्रचार प्रसार घूम-घूम कर पूरे देश में किया। आपने अनेक ग्रंथो की रचना की जिनमे प्रमुख ग्रंथ -अगर बाबा न होते, वेद से मार्क्स तक ,द बुद्धा एण्ड हिज धम्म इत्यादि । आपको वॉचस्पति की उपाधि भी प्रदान की गई । भंतेजी वास्तव में पाली भाषा के प्रकांड विद्वान थे। आपने देश में समरसता प्रदान करने का कार्य किया। संगोष्ठी का संचालन प्राध्यापक राजवीर सिंह ने किया।