काशी में कार्तिक पूर्णिमा के पावन पर्व पर उमड़ा आस्था का जनसैलाब। काशी के गंगा तट पर लाखो की संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई।वाराणसी के विश्व प्रसिद्ध दशाश्वमेध घाट, राजेन्द्र प्रसाद घाट,अस्सी घाट, केदार घाट, समेत सभी प्रमुख घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। श्रद्धालुओं ने गंगा में स्नान ध्यान कर आचमन करते हुए अपने श्रद्धा अनुसार ब्राह्मण एवं निर्धन गरीब लोगों को दान किए। इसके अलावा बाबा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में भोर से ही श्रद्धालुओं की लंबी कतार दर्शन पूजन के लिए लगी रही। कार्तिक पूर्णिमा को लेकर विभिन्न मान्यताओं को लेकर पुराणों में वर्णित है कि आदिकाल में त्रिपुरासुर नामक राक्षस का आतंक व्याप्त था। कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव ने प्रदोष काल में अर्धनारीश्वर का रूप लेकर त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था। इस अवसर पर भगवान विष्णु ने भगवान शंकर को त्रिपुरारी नाम दिया। जो कि महादेव के विभिन्न नामों में से एक है। त्रिपुरासुर के वध से सभी देवी देवता प्रसन्न हुए और भगवान भोले शंकर की प्रिय नगरी काशी में आकर गंगा किनारे दीप जला दीपावली मनाई। तभी से कार्तिक पूर्णिमा पर दीप जलाने की परंपरा काशी में अनवरत चली आ रही है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार काशी में कार्तिक पूर्णिमा के पावन पर्व के दिन देव-दीपावली के अवसर पर साक्षात देवतागण देवलोक से उतरकर काशी में दीपावली मनाने आते हैं। तो वही इस पर्व को भगवान विष्णु के प्रथम अवतार यानी मत्स्य अवतार के रूप में भी मनाया जाता है। आदिकाल में वेदों की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु ने मत्स्य का अवतार लिया था। जो कि उनका पृथ्वी पर प्रथम अवतार था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन गंगा स्नान से अपने पापों की मुक्ति मिलती है।