भारत की विशालता के साथ अनेक धर्म, संप्रदाय के खुशनुमा रंग

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पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी किताब डिस्कवरी ऑफ इंडिया में लिखा है कि भारत स्वयं में एक लघु विश्व है। निसंदेह इ भारत पर अध्ययन करने वाले सभी चिंतकों तथा विद्वानों ने एकमत से यह माना है कि भारत विविधताओं व बहुलताओं के मामले में विश्व का अनूठा एवं दिलचस्प देश है। अनेक प्रकार की भाषाएं, रीति रिवाज, खान-पान, रहन-सहन, लोकगीत,नृत्य, धर्म, संप्रदाय, सामाजिक संरचनाएं और संस्थाएं इस देश को बेहद बहुलतावादी और वैविध्यपूर्ण राष्ट्र बनाती है। इस विशाल, बहु भाषाई, बहु सांस्कृतिक देश की अपनी विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक, दार्शनिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, जनसांख्यिकी और भाषाई विभिन्नताएं, विषमताऐ और विशेषताएं विद्वमान है। जो इस देश की विविधता में एकता की खूबी को प्रदर्शित करती है। भारत की सामाजिक संरचना स्वयं में काफी जटिल है। देश में समाज बहुत सारे वर्गों उप वर्गों में बटा हुआ है, इसी तरह यहां समाज में ग्रामीण, उपनगरीय, नगरीय, महा नगरीय, जनजातीय, पहाड़ी कैसे वर्गों में विभाजित हुआ है। भारत में सामाजिक वर्ग भेद के साथ अंदरुनी अंतर्द्वंद भी बहुत ज्यादा है,जैसे कि एकल परिवार और संयुक्त परिवार जातिवादी जाति विहीन समाज ग्रामीण नगरीय द्वंद विवाह सन्यास का द्वंद जो अनेक रूपों में भारतीय समाज में जनमानस के रूप में दिखाई देता है और यह द्वंद स्वतंत्रता के पश्चात से दिखाई देने लगा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जहां ग्राम स्वराज को आर्थिक विकास की धुरी मानते हुए सर्वोदय पंचायती राज स्वरोजगार एवं परस्पर सहयोग को बढ़ावा देना चाहते थे।


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