सिंचाई कूप निर्माण जांच के नाम पर टाल-मटोल कर रहे जिम्मेदार अधिकारी, ग्रामीणों में आक्रोश

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बभनी, सोनभद्र। बभनी विकास खंड में लघु सिंचाई विभाग  द्वारा ग्राम पंचायतों में सिंचाई कूपों का निर्माण कराया जा रहा है, जिनमें सिंचाई कूपों में व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार व्याप्त है। मानक के अनुसार खुदाई न कराकर कुएं बंधवा दिए जा रहे हैं। मानक के अनुसार सामग्रियों का प्रयोग नहीं किया जा रहा है। कुछ कुओं में तो मोरंगयुक्त बालू और भस्सीयुक्त बोल्डरों का प्रयोग किया जा रहा है, जिस मामले की जानकारी विभाग जिम्मेदार अधिकारियों को भी दी गई परंतु उनके द्वारा इस मामले में विभाग की ओर से कोई प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली। जांच के नाम पर टाल-मटोल किया जा रहा, जिसे देख स्थानीय ग्रामीणों में आक्रोश व्याप्त है। उनका कहना है कि, विभागीय अधिकारियों की राह देखते-देखते पंद्रह दिन गुजर गए, किंतु सिंचाई कूपों पर किसी अधिकारी की कोई जांच नहीं हुई। बभनी विकास खंड के सवंरा गांव में दो सिंचाई कूप एक बलवीर और दूसरा गोपाल की सिंचाई कूप बन रहे हैं, जहां पूर्णतः लोकल बालू- बोल्डरों का प्रयोग किया जा रहा है। मानक के अनुरूप सामग्रियों का प्रयोग नहीं किया जा रहा है। ग्रामीण नंदलाल, राम खेलावन, राजेश, अवध बिहारी, रामाशंकर, जगमोहन, सुनील, दीपक, रामेश्वर, अजय कुमार समेत अन्य लोगों ने बताया कि, लघु सिंचाई विभाग द्वारा भ्रष्टाचार का व्यापक पैमाने पर बोलाबाला है जिसकी परिणति मानकों की अनदेखी व कमीशनखोरी के रूप में दिखाई देती है। शिकायत पर लघु सिंचाई विभाग के हुक्मरान मूकदर्शक बने हुए हैं। उन्होंने बताया कि, दस लाख की लागत से बनने वाले सिंचाई कूप वर्ष भर में ही जमींदोज हो जाएंगे। विभाग को दिखाने के लिए लोग दो-चार ट्राली बोल्डर सुकृत का गिरा देते हैं बाकी आस-पास के नदी-नालों व पहाड़ों से अवैध खनन कर उठवा लेते हैं जिसे देखकर प्रबुद्ध तबका भौचक है। बताते हैं कि, कमोवेश बभनी विकास खंड में लगभग दर्जनों सिंचाई कूपों का यही हाल है। क्षेत्रीय लोगों का आरोप है कि, लाखों की लागत में क्षेत्र में बड़ी संख्या में बनवाए जा रहे हैं जिनमें सिंचाई कूपों में मानकों की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। सरकार की मंशा के अनुसार लीज की बालू और सुकृत के बोल्डर से बनवाया जाना है, लेकिन कुछ ठेकेदारों के द्वारा आस-पास की नदियों से बालू और पहाड़ों से बोल्डर से कार्य कराया जा रहा है। यहां तक कि, जब वन विभाग के कर्मचारी वहां पहुंचते हैं तब उन्हें किसी बड़े स्तर के नेता मंत्रियों के द्वारा ट्रांसफर कराने की भी बात कही जाती है। जब इस संबंध में एई राहुल से संपर्क किया जाता है तो उनके द्वारा केवल समय दिया जाता है, लेकिन जांच नहीं की जाती है।

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